दलित समुदाय की स्थिति की खोज: भेदभाव का इतिहास और परिवर्तन के प्रयास

इस आर्टिकल में हम भारत के एक समुदाय पर होने वाले अत्याचार उनके निवारण के लिए किये गए प्रयास, दलितों के सुधार के लिए कार्य करने वाले कुछ व्यक्ति और संगठन तथा उनके साथ अत्याचार क्यों होता है आदि के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।  

दलित किसे कहते हैं

दलित शब्द का उपयोग उन लोगों के समूह के लिए किया जाता है जिन्हें परंपरागत रूप से भारत में हिंदू जाति व्यवस्था से बाहर माना जाता है। "दलित" शब्द का अर्थ संस्कृत में "उत्पीड़ित" या "टूटा हुआ" है और 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में बीआर अंबेडकर द्वारा गढ़ा गया था, जो एक समाज सुधारक थे, जिन्होंने दलित समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी थी।दलित का अर्थ सामान्य तौर पर ऐसे लगाया जाता है की जो गांव के बाहर रहते हैं और चमड़े का कार्य करते हैं। जिन्हे चमार कहा जाता है।

दलित किसे कहते हैं UPSC

कई वर्षों पहले कही-कहीं पर दलित समुदाय के लोग मरे हुए मवेशियों को दफ़नाने का कार्य भी करते थे। दफ़नाने के साथ वो लोग मरे हुए मवेशियों का मांस भी खाते थे।

अनुसूचितजाति और अनुसूचित जनजाति  को वर्तमान में दलित की वर्ग में रखा गया है। 

दलित समुदाय द्वारा अनुभव किया गया भेदभाव और उत्पीड़न

दलित, जिन्हें पहले "अछूत" के रूप में जाना जाता था, ऐतिहासिक रूप से भारत में गंभीर भेदभाव और उत्पीड़न को सहा है। उन्हें अपवित्र माना जाता था और उन्हें उच्च जातियों के सदस्यों के साथ बातचीत करने की अनुमति नहीं थी। नतीजतन, उन्हें अक्सर सबसे नीच और अवांछनीय नौकरिया दी जाती थी। और उन्हें शिक्षा या आर्थिक अवसरों तक पहुंचने की अनुमति नहीं दी गई। उन्हें अक्सर शारीरिक शोषण और हिंसा का भी शिकार होना पड़ता था, और अक्सर कानूनी व्यवस्था द्वारा उन्हें न्याय से वंचित कर दिया जाता था।

हाल के वर्षों में दलितों की स्थिति में कुछ हद तक सुधार हुआ है, लेकिन उन्हें अभी भी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। दलित अभी भी मुख्यधारा के समाज से अलग-थलग हैं और संसाधनों और अवसरों तक पहुंच से वंचित हैं। उन्हें गरीबी, कुपोषण और सामाजिक और आर्थिक अभाव के अन्य रूपों का भी अधिक खतरा है। लेकिन यह समाज अभी भी हिंसा और दुर्व्यवहार का निशाना बने हुए है। 

सरकार और सामाजिक संगठनों द्वारा सकारात्मक कार्रवाई नीतियों सहित इन मामलो को हल करने और दलितों के लिए समानता को बढ़ावा देने के प्रयास किए गए हैं। हालांकि, दलितों के खिलाफ भेदभाव और उत्पीड़न के मूल कारणों को दूर करने और यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है कि दलित वर्ग के लोग समाज के अन्य वर्गो के समान अधिकारों और अवसरों का लाभ लेने में सक्षम हैं।

लेकिन वर्तमान में भारत के संविधान में भेदभाव को ख़त्म करने के बावजूद दलितों की स्थिति में कोई ज्यादा सुधार नहीं आया है। आज भी दलितों को कभी मटके को छूने, मुछ रखने, बारात निकालने पर हत्या तक कर दी जाती है।

जालौर दलित छात्र

पिछले दिनों राजस्थान के जालोर जिले में इंद्र मेघवाल को उसी के विद्यालय के अध्यापक ने मार-मार कर घायल कर दिया क्योकि उसने वहां पर रखी मटकी से पानी पिया था। बाद में उस छात्र की मौत हो गई। इसी प्रकार जीतेन्द्र मेघवाल नामक दलित व्यक्ति की हत्या मुछ रखने पर कर दी गई।

ये घटनाये हमें बताती हैं की स्वतंत्र्ता मिलने और भारत में संविधान लागु होने के बावजूद दलितों की हालत खराब है। और इस प्रकार की घटनाएं हमें रोज देखने को मिल जाती हैं। 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के डाटा के अनुसार 2021 में एससी और एसटी के खिलाफ अपराधों में 1.2 और 6.4% की वृद्धि हुई है, जिसमें यूपी और एमपी सबसे आगे हैं।

यहां देखे NCRB का डाटा 


हिंदू धर्म में दलितों की स्थिति को सुधारने के प्रयास

हिंदू धर्म के अंदर दलितों की स्थिति में सुधार करने और इस हाशिए के समूह के लिए समानता और न्याय को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। इनमें से कुछ प्रयासों में शामिल हैं:

#1 आरक्षण : संविधान में दलितों की स्थिति में सुधार करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई जिसके अनुसार सरकारी नौकरियों में कुछ पद हाशिये के समुदायों के लिए आरक्षित रहेगी। जो इस प्रकार है:

  • अनुसूचित जाति (SC) के लिए 15 प्रतिशत 
  • अनुसूचित जन-जाति (ST) के लिए 7.5 प्रतिशत 
  • अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत 
  • सामान्य (GEN) 10 प्रतिशत 

सामान्य वर्ग के लिए संविधान में किसी भी प्रकार के आरक्षण की व्यवस्था नहीं है बाद में भारत सरकार ने सामान्य वर्ग को आरक्षण दिया है जो आर्थिक आधार पर जबकि बाकि वर्गों के लिए सामाजिक भेदभाव के आधार पर आरक्षण दिया गया है। 

#2 कानूनी सुधार : भारतीय संविधान सभी नागरिकों के लिए समानता की गारंटी देता है और धर्म, नस्ल, जाति या लिंग के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है (आर्टिकल 15). सरकार ने कई कानून भी पारित किए हैं जिनका उद्देश्य दलितों के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें समान अवसर प्रदान करना है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, जैसे कानून बनाकर दलितों के लिए न्याय में भी सुविधा प्रदान की गई है। 

#3 सामाजिक और आर्थिक पहलें : ऐसे कई संगठन जो दलितों को सशक्त बनाने और उन्हें अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक संसाधन और सहायता प्रदान करने के लिए काम करते हैं। ये संगठन अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं और दलित समुदायों की क्षमता निर्माण के लिए काम करते हैं।

#4 धार्मिक सुधार: कुछ हिंदू नेताओं और संगठनों ने जातिगत भेदभाव को खत्म करने और अधिक समानता और न्याय को बढ़ावा देने के लिए धर्म के भीतर सुधारों का आह्वान किया है। इन प्रयासों में अक्सर पारंपरिक ग्रंथों और शिक्षाओं की इस तरह से पुनर्व्याख्या करना शामिल होता है जो सभी लोगों के लिए समानता और सम्मान को बढ़ावा देता है, चाहे उनकी जाति या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।

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हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था

हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था एक सामाजिक पदानुक्रम है जो हिंदुओं को चार मुख्य श्रेणियों में विभाजित करती है, जिन्हें वर्णों के रूप में जाना जाता है। वर्ण हैं:

  1. ब्राह्मण (पुजारी और विद्वान)
  2. क्षत्रिय (शासक और योद्धा)
  3. वैश्य (व्यापारी और व्यवसायी)
  4. शूद्र (मजदूर और कारीगर)

दलित, जिन्हें पहले "अछूत" के रूप में जाना जाता था, को जाति व्यवस्था से बाहर माना जाता है। जाति व्यवस्था की जड़ें प्राचीन भारत में हैं और यह इस विश्वास पर आधारित थी कि किसी व्यक्ति की सामाजिक स्थिति और व्यवसाय उसके कर्म (पिछले जन्मों में किए गए कार्यों) द्वारा निर्धारित किया जाता था। जाति व्यवस्था कई लोगों के लिए बहुत पीड़ात्मक रही है, खासकर उन लोगों के लिए जिनको निचली जातियों के माने जाते हैं।

भारत में जाति व्यवस्था को आधिकारिक तौर पर समाप्त कर दिया गया है, लेकिन इसका समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव जारी है और यह अभी भी भेदभाव और असमानता का एक स्रोत है। जाति व्यवस्था को खत्म करने और समानता को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए गए हैं, जिसमें सकारात्मक कार्रवाई नीतियां शामिल हैं जो दलितों और अन्य हाशिए के समूहों के लिए शैक्षिक और आर्थिक अवसर प्रदान करती हैं। हालाँकि, जाति व्यवस्था भारत के कई हिस्सों में बनी हुई है और एक विवादास्पद और संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है।


दलितों के सुधार के लिए कार्य करने वाले कुछ व्यक्ति और संगठन 

दलित नेता लिस्ट

बाबा साहेब आंबेडकर : दलितों के लिए सुधार के प्रयासों में बाब साहेब का नाम सबसे पहले आता है। बचपन में उनके साथ बहुत जातिगत भेदभाव हुआ लेकिन उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प के चलते अत्याचार सहन करते हुए उच्च शिक्षा प्राप्त की और भारत का संविधान बनाया जिसमे लिंग, नस्ल, जाति आदि के कारण होने वाले अत्याचार को खत्म कर दिया।

मान्यवर कांशीराम: आज़ादी के बाद दलितों की स्थिति में सुधार करने में मान्यवर साहब कांशीराम का नाम सबसे पहले आता है कांशीराम ने दलितों की राजनितिक स्थिति में सुधार के लिए कार्य किया। इन्होने दलितों और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए एक राजनितिक पार्टी बनाई जिसको बहुजन समाज पार्टी के नाम से जाना जाता है।  

भीम आर्मी : भीम आर्मी एक ऐसा संगठन है यह एक अम्बेडकरवादी संगठन है। जो दलितों के हक़ अधिकरों के लिए सड़कों पर आंदोलन करता है। इसके संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद (रावण) हैं। दलितों के संवैधानिक अधिकार और जातिगत भेदभाव का विरोध करने के लिए इसकी 2015 में स्थापना की गई। इस संगठन ने स्थापना के बाद कई दलित मामलों में आंदोलन किये हैं और दलितों के हक़ अधिकारों के हमेशा आगे रहता है। 

बामसेफ : बामसेफ का पुरा नाम बेकवर्ड एंड माइनॉरिटी एम्प्लॉइज़ फेडरेशन है। इसकी स्थापना 1973 में डी.के. खरपडे और मान्यवर कांशीराम जी ने की थी। 

मिडिया: आज के समय में कई ऐसे सोशल मीडिया न्यूज़ चैनल बन गएँ हैं जो दलितों के हक़ अधिकारों के चारों और कार्य करते हैं। जैसी दलित टाइम्स, मूकनायक मीडिया, द शूद्रा, नेशनल दस्तक आदि। 

कृष्ण नायक कटराथल : कृष्ण नायक कटराथल राजस्थान के सीकर जिले के निवासी हैं, तथा मजबूती के साथ उत्पीड़न के मामलों में आवाज उठाते हैं। यें DASFI नामक छात्र संगठन के जिलाउपाध्यक्ष हैं।   

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दलितों का इतिहास

निष्कर्ष

भारत में दलित समुदाय का भेदभाव और उत्पीड़न का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसे "अछूत" माना जाता है और हिंदू जाति व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर रखा गया है। समानता को बढ़ावा देने के प्रयासों के बावजूद, दलितों को आज भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और अक्सर उन्हें संसाधनों, अवसरों और न्याय तक पहुंच से वंचित रखा जाता है। आवश्यक बदलाव लाने और सभी के लिए एक अधिक समावेशी और न्यायपूर्ण समाज को बढ़ावा देने के लिए सरकार, नागरिक समाज और धार्मिक संगठनों के प्रयासों की आवश्यकता होगी।टीना डाबी और कनिष्क कटारिया (दोनों ने यूपीएससी परीक्षा में टॉप किया) जैसे लोगों के उद्भव के साथ, दलितों के खिलाफ कलंक कुछ हद तक कम हुआ है। अगर दलितों के उत्थान के प्रयास के लिए आवश्यक नीतियां बनाकर उनकों सही तरिके से लागु किया जाय तो हम इस समुदाय को मुख्य-धारा में लेकर आ सकते हैं। इसके लिए जरुरी है अच्छी और आवश्यक नीतियां और उनका सही तरिके से लागु होना।